हिंदी भाषा विमर्श के नाम रहा दूसरा दिन,
भोपाल
टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव – विश्वरंग 2023 का औपचारिक उद्घाटन शुक्रवार को रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में हुआ। इस दौरान कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप मे कथाकार, पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ रहे। उनके साथ मंच पर विशिष्ठ अतिथियों में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी रहे। वहीं अन्य अतिथियों में मॉरिशस के विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव डॉ. माधुरी रामधारी एवं वैश्विक हिंदी परिवार के सदस्य अनिल जोशी एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यलय के कुलाधिपति एवं विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे, विश्वरंग के सह निदेशक डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, लीलाधर मंडलोई, मुकेश वर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे। संचालन टैगोर विश्वकला केंद्र के निदेशक विनय उपाध्याय का रहा।
इस अवसर पर कथाकार, पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि कलाकार, साहित्यकार, संस्कृतिप्रेमियों का पुंज है यह महोत्सव। संतोष जी की खासियत है कि वे सोचते भी हैं, बोलते भी हैं और कार्य रूप में परिणित भी करते हैं। आगे उन्होंने कहा कि हिंदी की प्रतिस्पर्धा भारतीय भाषाओं से नही है, यह प्रतिस्पर्धा अंग्रेजी भाषा से है। यह हमें समझना होगा।
वहीं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्वरंग के रूप में भारतीय भाषा और हिंदी के लिए बड़ा कार्य प्रारंभ हुआ है। इसे हम सबको मिलकर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलो। शिक्षा को बदलना है तो भाषा को पुनर्स्थापित करना होगा। आगे उन्होंने कहा कि अपनी भाषा का स्वाभिमान होना चाहिए। हमारे सारे पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं का विकल्प होना चाहिए।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एक परम तत्व से सब कुछ निकलता है, वैसा ही यह विश्वरंग है जिसमें सबकुछ समाया हुआ है। आगे उन्होंने कहा कि आज की आपाधापी में जब सबकुछ छिन्न भिन्न हो रहा है तब विश्वरंग सुकून की ओर लौटने का महोत्सव है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यलय के कुलाधिपति एवं विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने विश्वरंग की अवधारणा से अवगत कराया। साथ ही कहा कि हिंदी के सामने इस समय वैश्विक भाषा बनने के संभावना है। लेकिन जो सम्मान हम हिंदी के लिए चाहते हैं, वही सम्मान सभी भारतीय भाषाओं को देना होगा। हमें आवश्यकता है कि लोक भाषाओं के बारे में पुनर्विचार करें। वे भाषा को जीवन रस प्रदान करती हैं। यदि उन्हें छोड़ दो तो कविता याद रखना भी मुश्किल होगा। आगे उन्होंने कहा कि विश्वरंग के जरिए हमने प्रवासी भारतीयों के हिंदी के साहित्यिक कामों को समेटने का काम किया है। हिंदी के विस्तार का काम समुदाय को करना है। हम सरकार की तरफ इतना न देखें।
स्वागत वक्तव्य विश्वरंग के सह निदेशक डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने देते हुए सभी अतिथियों का परिचय देते हुए उनका स्वागत किया। इसके अलावा आईसेक्ट का परिचय देते हुए समूह द्वारा उच्च शिक्षा, भाषा, कौशल विकास, वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी।
इस अवसर पर कार्यक्रम में विश्वरंग सम्मान भी प्रदान किए गए। इसमें डॉ. धनंजय वर्मा को हिंदी को लिए, डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा को उर्दू के लिए, मनोरंजन ब्यौपारी को बांग्ला, वसंत आबा डहाके को मराठी, सुजाता चौधरी को उड़िया/अंग्रेजी, प्रो. कोलकपुरी एनाक को तेलुगू, एवं महादेव टोप्पो को हिंदी व कुडुख भाषा के लिए सम्मान प्रदान किए गए। इस अवसर पर हिंदी रिपोर्ट, विश्वरंग कैटलॉग एवं विश्वरंग पत्रिका का लोकार्पण अतिथियों ने किया।
कार्यक्रम में टैगोर विश्व कला केंद्र परिसर में स्थापित अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र का उद्घाटन भी अतिथियों ने किया। इस अवसर पर केंद्र के विषय में शॉर्ट फिल्म बनाई गई। केंद्रों की पुस्तिकाओं की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। अतिथियों ने सभी को सराहा। इस दौरान कार्यक्रम का संचालन विश्वरंग की निदेशक डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स ने किया।
इससे पहले विश्वरंग के दूसरे दिन की शुरुआत शुरुआत मंगलाचरण से हुई जिसमें साक्षी शिवलेकर ने मोहन वीणा पर भक्ति संगीत की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने वैष्णव जन तो… से शुरुआत की जिसके बाद “एकला चलो रे…” को प्रस्तुत किया। सुमधुर गीतों की श्रृंखला में अगली प्रस्तुति “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो…” को पेश किया। समापन राग अहिर भैरव के साथ किया। उनके साथ तबले पर रामेन्द्र सिंह सोलंकी ने संगत की।
भाषा उत्सव का प्रमुख वैचारिक सत्र “हमारा भाषाई वैविध्य-हमारी ताकत” विषय पर रहा जिसमें ख्यात लेखक और चिंतक पवन वर्मा बतौर मुख्य वक्ता शामिल रहे। साथ ही अनिल शर्मा जोशी भी बतौर वक्ता शामिल हुए। सान्निध्य रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे का रहा। संचालन टैगोर विश्वकला केंद्र के निदेशक विनय उपाध्याय द्वारा किया गया। अपने ऑनलाइन वक्तव्य में पवन वर्मा ने कहा कि टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव के अवसर पर हर वर्ष भारतीय संस्कृति पर गहन विचार विमर्श होता है। इन विचारों पर कम बातचीत होती है इसलिए इन पर विमर्श पर जोर दिया जाना चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि यंग माइंड्स को भी इन विषयों पर विचार करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि भाषाओं के मामले में विश्व में भारत दूसरे नंबर पर आता है। हमारे देश में 740 भाषाएं हैं। वहीं, हमसे छोटा देश पपुआ न्यू गिनी है जहां 840 भाषाएं बोली जाती हैं। हजारों सालों में ये भाषाएं उपजी हैं। लाखो करोड़़ लोग इन्हें बोलते हैं। हमें अपनी लिंग्विस्टिक हैरिटेज पर गर्व होना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि भारत में न केवल सबसे ज्यादा हिंदी भाषा बोली जाती है। बल्कि यह बढ़ने वाली भाषा है जिसका विस्तार तेजी से दुनिया भर में हो रहा है। भाषा एक ऐसा विषय है जिसे हमें संवेदनशील तरीके से अपनी ताकत बनाना चाहिए।
सान्निध्य वक्तव्य में संतोष चौबे ने पवन वर्मा जी की पुस्तक “भारतीयता की ओर” का संदर्भ देते हुए बताया कि यह किताब भारतीयता से बोध कराती है। उन्हें भी इसका अनुभव प्राप्त हुआ है। आज एनईपी ने भारतीय भाषा के वैविध्य को ताकत माना है। भारतीय भाषा को पढ़ाई की भाषा बनाने में 60-70 साल लगे हैं। हमारी भाषाई विविधता का तो अध्ययन ही नहीं हुआ है। भाषाई विविधता को हम सभी को देखना चाहिए। अनिल शर्मा जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय समाज में आज एक नई सोच विकसित हुई है और इस विमर्श का मकसद जरूरी सवाल सामने लाने का है जैसे क्यों भारतीय भाषा में कम आईएएस और सीए बनते हैं। हमें हिंदी को किसी भी मामले में कमतर नहीं आंकना चाहिए।
सांस्कृतिक सत्र (संध्याकालीन एवम् रात्रिकालीन सत्र)
विश्वरंग के दूसरे दिन संध्याकालीन पूर्वरंग में राजस्थान के पारंपरिक एवम प्रसिद्ध मांगणिहार लोक संगीत की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम की शुरुआत केसरिया बालम गीत से हुई, तत्पश्चात गौरबंध का गायन हुआ। वहीं बाल कलाकार राहुल एवम् भूरा खान ने हसे तो मीठों लागे गीत की प्रस्तुति दी। प्रमुख आकर्षण रहा 17 तारों वाला वाद्य कमायचा जिसका वादन भुगुडा खान कर रहे थे। साथ ही समस्त समूह का समन्वय कर रहे थे भुट्टे खान जी उनके साथ गायक के तौर पर नेहरू खान थे। हारमोनियम पर सखी खान एवम ढोलक पर जोगा खान संगत कर रहे थे। राजस्थान का पारंपरिक लोक वाद्य खड़ताल का वादन जेसा खान कर रहे थे।
रात्रिकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम में पंडित अखिलेश गुंदेचा एवम उनके समूह मध्य लय द्वारा ताल कचहरी की प्रस्तुति दी गई। मध्य लय मुख्यतः मध्यप्रदेश के ख्यातिनाम युवा कलाकारों का सामूहिक बैंड है जिसकी शुरुआत 12 साल पूर्व हुई थी। यह बैंड अमेरिका के वैश्विक मंच पर प्रस्तुति दे चुका है। कलाकारों ने महाकाल के 12 ज्योतिर्लिंगों की वंदना करते हुए शुभारंभ किया। तत्पश्चात राग जोग, मध्य लय और द्युति लय में दो बंदिशे प्रस्तुत की और संध्या का समापन एकला चलो रे से किया। शीर्ष गायक के रूप में अखिलेश गुंदेचा, साइड रिदम पर अनूप सिंह बोरलिया, सितार पर अनिरुद्ध जोशी, तबले पर रामेंद्र सिंह सोलंकी और बांसुरी पर पंडित संतोष संत संगत कर रहे थे।
हिंदी शिक्षण पर समानंतर सत्रों में हुआ विमर्श
विदेशों में हिन्दी शिक्षण पर अनुभव किये साझा
अंग्रेजी की तरह ही हिन्दी की आनलाइन शिक्षा पर भी हमें विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही विदेशी छात्रों को देवनागरी लिपि सिखाने पर विशेष ध्यान देना होगा। ये उद्गार अनिल जोशी ने विश्वरंग 2023 के अंतर्गत आयोजित सत्र विदेशों में हिन्दी शिक्षण के अनुभव के दौरान अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये। सत्र के अंतर्गत विचार व्यक्त करते हुए स्विटजरलैण्ड से आईं ज्योति शर्मा ने कहा कि हिन्दी की स्थिति विश्व पटल पर बेहद उज्जवल है। स्विटजरलैण्ड में हिन्दी की विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने वहां पर छात्रों को हिन्दी अध्ययन कराने के कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। वहां छात्रों में भी हिन्दी अध्ययन को लेकर ललक दिखाई देती है। हंगरी से आये प्रमोद शर्मा ने हंगरी में हिन्दी अध्यापन में आई चुनौतियों और सफलताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने अनुवाद को हिन्दी शिक्षा के अध्यापन में महत्वपूर्ण टूल बताया। वहीं इंग्लैण्ड से आए राकेश दुबे ने हिन्दी के प्रचार प्रसार में अपने द्वारा किये कार्यों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इसके लिये उन्होंने विश्व हिन्दी सम्मान की शुरुआत भी ब्रिटेन में 2006 में की थी। सत्र का संचालन मुक्ति शर्मा ने किया।
सामाजिक संस्थाओं द्वारा हिंदी शिक्षण
चौथा सत्र सामाजिक संस्थाओं द्वारा हिंदी शिक्षण विषय पर आधारित रहा। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे नारायण कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा की ‘हिंदी रोजगार की नही, संस्कार की भाषा है’। प्रथम वक्ता के रूप में नाटिंगम से आईं सुश्री जया वर्मा ने विदेश में हिंदी शिक्षण के लिए किए गए कार्यों की जानकारी देते हुए बताया कि 1988 में उन्होंने नाटिंगमशिरे काउंटी काउंसिल के माध्यम से मातृभाषा अध्ययन प्रोजेक्ट की शुरुआत की जिसमे छोटी-छोटी बातों के माध्यम से हिंदी शिक्षण का काम किया। तत्पश्चात स्विट्जरलैंड में हिंदी के अध्यापन में कार्य कर रही शिवानी भारद्वाज ने रविवार हिंदी शिक्षण संघ के माध्यम से हिन्दी विद्यालय की स्थापना की साथ ही कोविडकाल में आनलाइन शिक्षा दी। सोवियत संघ रूस में चल रहे हिंदी शिक्षण के इतिहास के बारे में जिक्र करते हुए प्रगति टिपणीस ने बताया 1957 में भारतीय अनुवादक दल के रूस भेजे जाने के पश्चात वहां हिंदी शिक्षण का कार्य गति पकड़ चुका था और अब रूस में किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को हिंदी सीखने में कोई समस्या नही हो रही। उन्होंने बताया की शैलेंद्र के गाने ‘सिर पे लाल टोपी रूसी’ और राज कपूर की लोकप्रियता ने भी हिन्दी के प्रति रूसी लोगो का रुझान बढ़ाया था, और वर्तमान में हिंदी अभिनेताओं की लोकप्रियता रूस ने अधिक होने से हिंदी के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। अंत में अध्यक्षता कर रहे नारायण कुमार जी ” गिरमिटिया ” का जिक्र करते हुए बताया की भारतीय मूल के मजदूरों को बहला-फुसला कर सूरीनाम, वेस्ट इंडीज, मॉरीशस और फ़िजी जैसे देशों में ले जाने के लिए एक एग्रीमेंट होता था जिसे भारतीय मूल के लोगों ने अपनी भाषा में उसे उच्चारित करते-करते एग्रीमेंट को गिरमिटिया बना दिया और उसी शब्द का प्रयोग करने लगे। साथ ही उन्होंने विषय पर जोड़ते हुए गुज़ारिश भी की, कि सामाजिक संस्थाओं को देशकाल के हिसाब से पाध्यक्रम बनाने की अनुमति दी जाए।
भाषा के साथ साहित्य को भी लेकर चलना होगा
हिंदी भाषा शिक्षण मे साहित्य की भूमिका विषय पर सत्र पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की विभाग अध्यक्ष और साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि हिंदी भाषा शिक्षण में साहित्य के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करना होगा, जो आज बहुत ही प्रासंगिक है. उन्होंने यह भी कहा की साहित्यिक पाठों का चयन और निर्माण कैसे हो, यह हमें तय करने की जरूरत है. इस अवसर पर रेल मंत्रालय, राजभाषा निदेशक डॉ वरुण कुमार ने कहा कि कविताओं, कहानियों, नाटकों आदि के माध्यम से भाषा सीखने में सहूलियत होती है, और भाषा के सभी कौशलों में प्रशिक्षक दक्ष हो जाते हैं. भाषा का ज्ञान होने से मतलब यह है, कि उसके साहित्य का समृद्ध ज्ञान होना होता है. लिस्बन विश्वविद्यालय पुर्तगाल से पधारे शिवकुमार सिंह ने कहा कि हमारी हिंदी जितनी मजबूत जड़ों यानी अपने देश में में होगी. उतनी ही मजबूत विदेश में होगी. उन्होंने कहा कि भाषा शिक्षण में साहित्य का महत्व हमेशा रहा है, और सदैव ही रहेगा. साहित्यिक कृतियों का इस्तेमाल करते हुए सामग्री का निर्माण किया जाना चाहिए . उन्होंने यह भी कहा कि भाषा, साहित्य और संस्कृति वैसे ही एक दूसरे के पूरक हैं. जैसे पेड़ पत्ते और जड़ तीनों की. भाषा में दक्षता तभी प्राप्त हो सकती है यदि प्रशिक्षक इन तीनों पर भी दक्ष हो.वरिष्ठ साहित्यकार बलराम गुमास्ता ने कहा कि मनुष्य बनाने की प्रक्रिया में साहित्य जरूरी है , शब्दों को गतिशील बना बनाना है. जड़ नहीं बनाना है. कार्यक्रम मे विश्व रंग के निदेशक और कार्यक्रम के अध्यक्ष संतोष चौबे ने कहा कि साहित्य को हटाकर हम भाषा की बात नहीं कर सकते. जब भी भाषा की बात होगी हमें साहित्य को साथ में लेकर चलना होगा. उन्होंने यह भी कहा कि आज टेक्नोलॉजी में अपना स्थान बनाया है. इसे हमें स्वीकार करना होगा. संतोष चौबे ने तमिल कविता भी सुनाई. कार्यक्रम का संचालन विजय मिश्रा सहायक प्राध्यापक हंसराज महाविद्यालय दिल्ली ने किया. इस अवसर पर मैं तोड़ती पत्थर कविता पर वीडियो भी दिखाई गई।
55 देशों में हिंदी की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट की प्रस्तुति
विश्व में हिंदी सत्र के तहत “विदेश में हिंदी पत्रिकाओं पर फिल्म, विश्व में हिंदी रिपोर्ट” का प्रस्तुतिकरण और चर्चा का आयोजन हुआ। इसमें अध्यक्षता डॉ. जवाहर कर्नावट, निदेशक, हिंदी भवन श्यामला हिलस द्वारा की गई। इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. राकेश पांडे, श्री अशोक मिश्रा एवं सुश्री स्नेहा ठाकुर मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत श्री संतोष चौबे के मार्गदर्शन में डॉ. जवाहर कर्नावट द्वारा निर्मित विदेश में पत्रिकाओं की स्थिति पर बनी फिल्म एवं 55 देशों में हिंदी की स्तिथि पर निर्मित विस्तृत रिपोर्ट की प्रस्तुति से की गई| डॉ. जयशंकर यादव ने कहा कि हिंदी भाषा के विस्तार को एक लक्ष्य बनाना है जिसे शुद्ध चैतन्य से जमीनी स्तर पर व्यवहारिक कुशलता में लाने की कोशिश करनी है| हमें अपने हिंदी भाषा का सम्मान करना चाहिए तथा इसे प्रयोग में लाना चाहिए। श्री अशोक मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए भारत सरकार का बहुत बड़ा योगदान है| प्रत्येक चार वर्षों में सरकार द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन करना, जिसमें 5000 लोग अपने लिखे का वाचन करते हैं एक सराहनीय कार्य है| भाषा के प्रचार में पत्रिकाओं, फिल्मों एवं संगीतों का अहम योगदान होता है| प्रवासी संसार के संपादक डॉ० राकेश पांडे ने कहा कि जिस देश से हमारे व्यावसायिक संबंध अच्छे हैं वहां हिंदी भाषाओं का प्रचार भी अच्छा है|हिंदी भाषाओं का प्रचार क्षेत्रीय लोग से ही संभव है| इसके वैश्विक स्वरूप हेतु हिंदी शैक्षणिक संस्थान एक माध्यम जरूर हो सकते हैं मगर इसका विस्तार इसे सामाजिक भाषा के रूप में अपनाकर ही संभव है| कनाडा में प्रेषित वसुधा पत्रिका के संपादक स्नेहा ठाकुर ने लोगों से आर्थिक योगदान के बजाय हार्दिक योगदान का आह्वान किया उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रति जो हमारी साधना है उससे ही हिंदी का विस्तार संभव है| अंग्रेजी भाषा में हम अपने संस्कृति का विकास एक लंगड़े घोड़े की तरह देख सकते हैं।
पाठ्यक्रम वार्तालापीय हिंदी के अनुसार हो
विदेशों में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी शिक्षण पर सत्र में अध्यक्षता करते हुए डॉ. माधुरी रामधारी ने कहा कि प्राथमिक और मध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या कम होती जा रही है। ऐसे में पाठ्यक्रम इस प्रकार बनाये कि मौखिक पाठ्यक्रम की प्राथमिकता हो। यानि पाठ्यक्रम वार्तालापीय हिन्दी के अनुसार होना चाहिए। छात्र पहले किसी भाषा को सुनता है फिर उसे बोलता है और अंत में वह लिखता है। भाषा की एकरूपता बहुत महत्वपूर्ण है। एकरूपता होगी तभी हिन्दी भाषा में समानता होगी। कार्यक्रम में सान्निध्य पुष्पिता अवस्थी का रहा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे अंदर हिन्दी भाषा के प्रति स्वभिमान होना चहिए। हिन्दी भाषा शरनामियों के द्वारा भी बोली जाती है। 2006 में विश्व हिन्दी प्रदर्शन में हिन्दी भाषा प्रधान भाषा थी। भारत में हिन्दी भाषा परिवार के 46 प्रकार हैं। इसके अलावा कार्यक्रम में यूएसए से अनूप भार्गव, उज्बेकिस्तान से गुलेरा शेरमतोबा, एनआईओएस के निदेशक राजीव कुमार सिंह उपस्थित रहे। संचालन ज्योति शर्मा का रहा।
विविध पुस्तकों का लोकार्पण और हुई चर्चा
सत्र प्रवासी भारतीय साहित्य के दौरान विविध पुस्तकों का लोकार्पण और पुस्तकों पर चर्चा का आयोजन हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता विश्वरंग के निदेशक श्री संतोष चौबे द्वारा की गई। इस सत्र में डॉ. पुष्पिता अवस्थी और डॉ. दिव्या माथुर की पुस्तक पर चर्चा डॉ. सीमा रायजॉदा तथा जितेन्द्र श्रीवास्तव द्वारा की गई। सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वरंग के निदेशक श्री संतोष चौबे ने कहा कि प्रवासी साहित्य में बेहद बदलाव आ गया है और हमें इसे नये नजरिये से भी देखने की जरूरत है। साहित्य स्मृति से उभरता है और स्मृतियां साहित्य को और भी विस्तार प्रदान करती है। इस सत्र में पहले डॉ. पुष्पिता अवस्थी के उपन्यास पर डॉ. सीमा रायजादा द्वारा चर्चा की गई। उन्होंने पुष्पिता जी से उपन्यास के बारे में कुछ प्रश्न किये, जिनका सिल—सिलेवार ढंग से पुष्पिता जी द्वारा उत्तर दिया गया। पुष्पिता जी ने अपने कथन में कहा कि यह उपन्यास प्रवास के दौरान हिन्दुस्तानियों के संघर्ष को बयां करता है। इसमें 3 महाद्वीपों के संघर्ष की कहानी भी है। यह उपन्यास विशेष रूप से विश्वरंग के निदेशक श्री संतोष चौबे जी को समर्पित किया गया। सत्र के अगले पड़ाव में डॉ. दिव्या माथुर जी के उपन्यास तिलिस्म पर चर्चा की गई। यह चर्चा जितेन्द्र श्रीवास्तव द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि 586 पृष्ठों का विस्तृत उपन्यास लिखना सबके वश की बात नहीं है। यह उपन्यास जीवन और मन की शल्य क्रिया कराने वाला उपन्यास है। एक प्रकार से जीवन को समझने और समझाने का प्रमेय है। इस उपन्यास में पात्रों के भावों में पूरी तीव्रता है।
भाषा के मानकीकरण और प्रमाणीकरण पर चर्चा
हिंदी भाषा के विविध आयाम पर चर्चा करते हुए, वैश्विक स्तर पर हिंदी शिक्षण की विषय वस्तु, उसके मानकीकरण और प्रमाणीकरण पर विस्तृत परिचर्चा हुई। इस सत्र में हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय स्थित अनुवाद केंद्र की समन्वयक डॉ. श्रद्धा श्रीवास्तव ने हिंदी भाषा अर्जन पाठ्यक्रम पर प्रेजेंटेशन देते हुए, भाषा अर्जन के प्रत्येक स्तर की व्याख्या की। आईसेक्ट समूह में कार्यरत श्री प्रशांत सोनी ने डिजिटल प्रयामर पर आधारित फिल्म का भी प्रदर्शन किया। सत्र में उपस्थित वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं भाषाविद डॉ. नवीन लोहनी ने भाषा शिक्षण पाठ्यक्रम के मसौदे की तारीफ करते हुए, रबीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी को ऐसे कार्य के लिए बधाई दी। सत्र के अध्यक्ष डॉ. अमिताभ सक्सेना ने कहा कि हिंदी शिक्षण पाठ्यक्रम के मानकीकरण का पहला प्रयास बहुत ही सराहनीय है, इसके साथ ही पाठ्यक्रम की पहली पुस्तक ‘ नींव’ का विमोचन भी किया गया। सत्र का संचालन मानविकी एवम उदारकाला संकाय की अधिष्ठाता डॉ. रुचि मिश्रा तिवारी ने किया।
विद्वानों ने साझा किए विदेशों में हिंदी शिक्षण का अनुभव
विदेशों में हिंदी शिक्षण के अनुभव पर आयोजित सत्र में अध्यक्षता लिस्बन विश्वविद्यालय पुर्तगाल के प्राध्यापक शिव कुमार सिंह ने की। मौके पर जेएनयू की प्राध्यापिका डॉ. गरिमा श्रीवास्तव ने विश्वरंग के जरिए हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के बेहतरीन प्रयास के लिए आरएनटीयू के कुलाधिपति व विश्वरंग निदेशक संतोष चौबे की प्रशंसा की और कहा कि रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के इस पहल से आने वाले समय में हिंदी भाषा के क्षेत्र में व्यापक सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। उन्होंने हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने की कोशिश में अनुचित शब्दों के समावेश पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए कई ऐसे शब्दों के प्रयोग का प्रचलन आम होता जा रहा है, जो हिंदी भाषा की सेहत के लिए और भारतीय परंपरा के लिए अनुकूल नहीं है। इसलिए इस पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता है। वहीं आयरलैंड में आईटी के क्षेत्र में कार्य करते हुए हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के सफल प्रयास कर रहे अभिषेक त्रिपाठी ने विदेशों में हिंदी शिक्षण का अनुभव साझा करते हुए कहा कि 55 लाख की आबादी वाले आयरलैंड में करीबन 50 हजार भारतीय हैं, जहां हिंदी भाषा की समृद्धि पर बहुत कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल आयरलैंड में हिंदी की स्थिति तो बहुत अच्छी नहीं है पर यहां के विद्यार्थियों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि विदेशों में हिंदी शिक्षण की बात हो, तो किताबी भाषा के साथ साथ बोलचाल की भाषा को भी सिखाए जाने की आवश्यकता है। लिस्बन विश्वविद्यालय पुर्तगाल के शिव कुमार सिंह ने विदेशों में हिंदी शिक्षण का अनुभव के आधार पर हिंदी को और लचीला बनाए जाने पर बल दिया। साथ ही शुरूआती दौर की खामियों को नजरंदाज करना भी हिंदी भाषा की पहुंच बढ़ाने को उन्होंने महत्वपूर्ण माना। उन्होंने कहा कि रोज़गार के अवसर हिंदी के लिए विश्व में जितने अधिक बढ़ेंगे, उतनी ही तेजी से हिंदी भाषा विश्वपटल पर छाने में कामयाब हो पाएगी। कार्यक्रम के आखिर में डॉ जवाहर करनावट के हाथों सभी वक्ताओं को रविंद्र नाथ टैगोर की स्मृति चिन्ह और प्रशंसा पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। वक्ताओं को सुनने के लिए इस मौके पर बड़ी संख्या में दर्शक मौजूद थे।
अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय एवं रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के बीच हुआ एमओयू विश्वविद्यालय में हिंदी शिक्षण की चुनौतियां पर विशेष सत्र का आयोजन किया गया। सत्र की अध्यक्षता रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रजनीकांत जी द्वारा की गई| इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. खेम सिंह डेहरिया, सिनेमा एवं थिएटर में कार्य कर चुके डॉ. सविता भार्गव, इग्नू विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. जितेंद्र श्रीवास्तव एवं श्री सत्य केतु सांकृत जी मौजूद थे। कार्यक्रम की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय एवं रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के बीच एमओयू पे हस्ताक्षर के साथ की गई|
खेम सिंह डेहरिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि सरकार द्वारा प्रदत्त योगदान राशि, लोगों में हिंदी भाषा की उच्चारण की समस्या, रचनात्मकता की कमी, रोजगार की भाषा में अंग्रेजी की अनिवार्यता एवं उच्च शिक्षा में अंग्रेजी की कमी यह तमाम आज के दिन में हिंदी माध्यम से शिक्षण के लिए चुनौतियां पैदा करती है| रवींद्रनाथ टैगोर के कुलाधिपति का हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति लगाव ही विश्व रंग को आज एक साहित्य उत्सव का रूप दे रखा है| डॉ० सविता भार्गव ने कहा कि हम सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास इत्यादि में हिंदी भाषा में शिक्षण की बात करते तो है लेकिन अनुवादित लेखन में मौलिकता की कमी साफ नजर आती है| वहीं वैज्ञानिक शिक्षण में भी हिंदी भाषा का परिचलन काफी कम है| सत्य केतु जी ने अपने संबोधन में कहा कि लगभग सभी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में हिंदी में शिक्षण की व्यवस्था तो है लेकिन वैज्ञानिक शिक्षण एवं चिकित्सा शिक्षण में हिंदी भाषा को अभी भी हम मूल रूप से नहीं ला पा रहे है। उन्होंने कहा कि अगर हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बात करें जिसका मूल आधार भारतीय भाषाएं हैं तो वह निश्चय ही इस कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती है। हमें आधुनिकता की बात तो करनी चाहिए लेकिन साथ में हमें पारंपरिकता का भी तालमेल लेकर चलना चाहिए। पारंपरिकता हमारे अंदर संवेदना पैदा करती है। डॉ. जितेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि जब हम हिंदी में शिक्षण की बात करते हैं तो दो तरह का शिक्षण एक हिंदी भाषा और दूसरा हिंदी साहित्य की शिक्षण की बात करते हैं| हिंदी भाषा की शिक्षण एक भाषाई विज्ञान है, जिसकी संभावनाएं रोजगार की संभावनाएं तलाशने के साथ ही बढ़ सकती है| हमें हिंदी से सिर्फ लेने की बजाय अब हिंदी को कुछ देने की बात करनी चाहिए| हमें हिंदी भाषा को सहज तरीके से लोगों के बीच पहुंचाना चाहिए।
यूनिवर्सल हिंदी टेस्ट
विश्वरंग के दूसरे दिन बारहवें सत्र में ‘यूनिवर्सल हिंदी परीक्षा’ विषय पर अनेक वक्ताओं ने अपनी बात रखी साथ ही इसके संकल्पना, विकास और भविष्य पर चर्चा हुई। विषय पर प्रस्तावना देते हुए डा. रेखा सेठी बताया की 55 से अधिक देशों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। हिंदी प्रशिक्षण को वैश्विक रूप से सर्व सुलभ करने के उद्देश्य से यह परीक्षा का स्वरूप रखा गया है। इसके लाभ अनेक आयामों में हो सकते हैं, जिनमे से एक रोजगार की अनेक संभावनाएं पैदा करना है। वहीं इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए पुर्तगाल से आए हुए शिव कुमार सिंह ने प्रशिक्षण के स्तरों के बारे में बताया की प्रशिक्षण चार प्रमुख स्तरों में होगा इनके नाम क्रमशः प्रारंभिक, माध्यमिक, उच्चतर एवम् उच्चतम होंगे। यूएसए की कुसुम नेपसिक जी ने इस समस्त प्रक्रम की मूल्यांकन के चार स्तरों को बताया और उनके स्तरों के हिसाब से मूल्यांकन विधियों की जानकारी दी। परीक्षा पर बात करते हुए डॉ. श्रद्धा श्रीवास्तव ने बताया कि यह परीक्षा पांच स्तरों पर हो सकती है जो क्रमशः नींव, आधार, आरोह, शिखर एवम उड़ान हैं। हम भाषिक तौर पर समृद्ध हैं और जो दिशा हमे मिली है हम दुनिया में उसे बाटेंगे। आस्ट्रेलिया से आए हुए अनिल शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा की भारत आध्यत्म का पर्यायवाची रहा है। भाषा कहती कम और छिपाती ज्यादा है। यह परीक्षा भाषा ज्ञान में उत्प्रेरक साबित होगी। यह देश की सीमाओं से परे हिंदी की दक्षता को मापने का कार्य है। इस परीक्षा से सार्थक सांस्कृतिक संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। इसका उद्देश्य रहेगा की हिंदी में प्रवीणता एक रणनीतिक क्षमता बन सके। अमिताभ सक्सेना ने अपनी बात रखते हुए बताया की यह परीक्षा टेक्नोलॉजी आधारित होंगी। और प्रश्नों को चयनित करने के लिए बबल शार्टिंग तारीके का प्रयोग किया जाएगा। अपनी बात समाप्त करते हुए कहा की जिस तरीके से धरती हमारी मां है, उसी तरीके से हिंदी भी हमारी मां है। हम हिन्दी के वैश्विक वृद्धि के लिए सबका सहयोग लेकर रहेंगे।
हिंदी भाषा शिक्षण में साहित्य, कलाओं और फिल्मों की भूमिका विषय पर एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया जिसमें कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार संतोष चौबे ने कहा कि हिंदी भाषा के साहित्य और फिल्म में अपना योगदान देकर होली और भक्ति संगीत के माध्यम से लोगों के बीच साक्षरता को प्रोत्साहित करके साहित्यिक, कला और सांस्कृतिक संस्कृति को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। साहित्यकार ज्ञान चतुर्वदी ने अपने वक्तव्य में हिंदी भाषा के शिक्षण को बच्चों के लिए व्याकरण के माध्यम से सरल और रोचक बनाने का भी सुझाव दिया है। इस सत्र में सुरेश ऋतुपर्ण और प्रगति टिपणिस भी उपस्थित रहीं।